Goraksha Nath Ji Ki Aarti
श्री गोरक्षनाथ जी की आरतीऊँ जय गोरक्ष देवा, श्री स्वामी जय गोरक्ष देवा।सुर-नर मुनि जन ध्यावें, सन्त करत सेवा॥ऊँ गुरुजी योगयुक्ति कर जानत, मानत ब्रह्म ज्ञानी।सिद्ध शिरोमणि राजत, गोरक्ष गुणखानी ॥1॥ जयऊँ गुरुजी ज्ञान ध्यान के धारी, सब के हितका...री।गो इन्द्रिन के स्वामी, राखत सुध सारी ॥2॥ जयऊँ गुरुजी रमते राम सकल, युग मांही छाया है नाहीं।घट-घट गोरक्ष व्यापक, सो लख घट माहीं ॥3॥ जयऊँ गुरुजी भष्मी लसत शरीरा,रजनी है संगी।योग विचारक जानत, योगी बहु रंगी ॥4॥ जयऊँ गुरुजी कण्ठ विराजत सींगी-सेली, जत मत सुख मेली।भगवाँ कन्था सोहत, ज्ञान रतन थैली ॥5॥ जयऊँ गुरुजी कानन कुण्डल राजत, साजत रविचन्दा।बाजत अनहद बाजा, भागत दुख-द्वन्द्वा ॥6॥ जयऊँ गुरुजी निद्रा मारो,काल संहारो, संकट के बैरी।करो कृपा सन्तन पर, शरणागत थारी ॥7॥ जयऊँ गुरुजी ऐसी गोरक्ष आरती, निशदिन जो गावै।वरणै राजा 'रामचन्द्र योगी', सुख सम्पत्ति पावै ॥8॥ जय-------------------------------------------------------------------------------------------------
गोरख बोली सुनहु रे अवधू, पंचों पसर निवारी अपनी आत्मा एपी विचारो, सोवो पाँव पसरी “ऐसा जप जपो मन ली | सोऽहं सोऽहं अजपा गई असं द्रिधा करी धरो ध्यान | अहिनिसी सुमिरौ ब्रह्म गियान नासा आगरा निज ज्यों बाई | इडा पिंगला मध्य समाई || छः साईं सहंस इक...िसु जप | अनहद उपजी अपि एपी || बैंक नाली में उगे सुर | रोम-रोम धुनी बजाई तुर || उल्टी कमल सहस्रदल बस | भ्रमर गुफा में ज्योति प्रकाश || गगन मंडल में औंधा कुवां, जहाँ अमृत का वसा | सगुरा होई सो भर-भर पिया, निगुरा जे प्यासा । ।
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